बिहार मतदाता सूची संशोधन: लोकतंत्र का नया संकट?
बिहार मतदाता सूची संशोधन: लोकतंत्र का नया संकट?
24 जून 2025 को बिहार में चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया शुरू की। यह कदम बिहार मतदाता सूची संशोधन अभियान के अंतर्गत आता है। आयोग का दावा है कि यह कदम निष्कलंक, यानी “pure rolls”, बनाने के लिए आवश्यक है । प्रतिदिन हजारों बूट-स्तरीय अधिकारी (BLO) door-to-door फॉर्म भरने जा रहे हैं; 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 97% तक फॉर्म वितरित हो चुके हैं ।
1. आयोग का आधार और विपक्ष की आपत्तियाँ
चुनाव आयोग का कहना है कि SIR प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 एवं जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं की जन्म, नागरिकता आदि की सत्यता जांचने के लिए जरूरी है । लेकिन विपक्षियों ने इसे चुनाव-पूर्व त्वरित कार्रवाई करार देते हुए गरीब, दलित, पिछड़े, प्रवासी मजदूरों के वोटर सूची से कटने का आरोप लगाया है ।
कुछ विश्लेषकों ने कहा कि इस तरह के दस्तावेज़-आधारित सत्यापन की आवश्यकता है, तो क्या इससे नागरिकता सिद्ध करने के नाम पर एनआरसी-सीएए जैसी प्रक्रियाएं फिर से शुरू हो सकती हैं । राज्य के कुछ ज़िलों में जैसे किशनगंज, अररिया, कटिहार व पूर्णिया में आधार कार्ड धारक आबादी आधार से अधिक पाई गई है — इसने विवाद को और हवा दी है ।
2. विपक्ष का विरोध – बिहार बंद और विरोध प्रदर्शन
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राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, दिग्विजय सिंह समेत विपक्ष नेताओं ने आयोग की प्रक्रिया को “लोकतंत्र कमजोर करने की कोशिश” करार दिया ।
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जगदीप छोकर जैसे विद्वानों ने समय की कमी पर सवाल उठाए — क्या 30 दिन में 8 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन हो सकता है?।
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बिहार बंद (Bihar Bandh) के दौरान विरोधात्मक ‘चक्का जाम’ प्रदर्शन भी हुए, जहाँ राजनेताओं ने संभावित वोटर इंफ्रेंजमेंट पर सख्त विरोध जताया ।
3. कोर्ट में याचिकाएँ: SIR प्रक्रिया चुनौती के दायरे में
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ADR (Association for Democratic Reforms) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि SIR से दो करोड़ से अधिक मतदाता वंचित हो सकते हैं, क्योंकि उनसे आवश्यक दस्तावेज मांगे जा रहे हैं ।
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महुआ मोइत्रा, मनोज झा, और पीयूसीएल जैसे संगठनों ने तत्काल SIR के फैसले को रद्द करने की मांग की और इसे संविधान व कानून का उल्लंघन बताया ।
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई तय की है – 10 जुलाई 2025 को मामले पर सुनवाई होगी ।
4. आयोग की व्यवस्थाएं, प्रक्रिया और समयरेखा
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24 जून–25 जुलाई 2025 के बीच फॉर्म वितरित और एकत्रित किए जा रहे हैं ।
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1 अगस्त 2025 को मसौदा वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी और 1 सितंबर तक आपत्तियाँ दर्ज की जा सकेंगी ।
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CEC ज्ञानेश कुमार ने भरोसा दिलाया कि प्रक्रिया पारदर्शी, समावेशी होगी, और यदि कोई व्यक्ति कागज़ात प्रस्तुत नहीं कर पाया तो उसे पुनः शामिल करने का अवसर मिलेगा ।
5. प्रभाव: वंचित वोटर्स, मतदान अधिकार और चुनाव परिणाम
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विपक्ष का कहना है कि तीन करोड़ से अधिक प्रवासी वोटर घर-घर सत्यापन प्रक्रिया में असमर्थ रह सकते हैं ।
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कई विश्लेषकों ने चिंता जताई कि इसके कारण गरीब, दलित, अल्पसंख्यक समुदायों के वोटर सूची से बाहर होने की आशंका है ।
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कांग्रेस नेताओं ने इसे “वोट-बंदी” करार देते हुए बताया कि इससे दो करोड़ से अधिक मतदाता प्रभावित हो सकते हैं ।
निष्कर्ष और आगे का रास्ता
यह SIR प्रक्रिया कई सवाल उठाती है:
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क्या संविधान और कानून के अनुसार समय पर और पर्याप्त सूचना देकर दस्तावेज माँगे गए?
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क्या प्रवासी, गरीब, अशिक्षित नागरिकों को पर्याप्त सहायता और अपील की सुविधा दी जा रही है?
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क्या न्यायपालिका इस प्रक्रिया को लोकतंत्र के लिए जरूरी कार्रवाई या असमान “वोट बर्दाश्त” के रूप में देखेगी?
चुनाव आयोग का उद्देश्य साफ-सुथरी वोटर लिस्ट तैयार करना हो सकता है, लेकिन विपक्ष इस पर राजनीतिक पक्षपात और वंचितों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन मान रहा है।
हमारा सुझाव
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यदि आप या आपके जानकार SIR में दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए — तो 1 अगस्त से 1 सितंबर तक आपत्ति (claims & objections) दर्ज कर सकते हैं।
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बूट‑स्तरीय अधिकारी (BLO) से लगातार संपर्क में रहें और यदि आवश्यक हो तो कानूनी सलाह भी लें ताकि वोटर सूची से आपका नाम न हटे।
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सुप्रीम कोर्ट की 10 जुलाई 2025 की सुनवाई ध्यान से देखें; यहां महत्वपूर्ण कानूनी निर्णय हो सकते हैं, जो प्रक्रिया को प्रभावित करेंगे।
कोई सवाल हो या किसी विशेष पहलू पर जानकारी चाहिए हो — जैसे फॉर्म भरने की प्रक्रिया, आपत्तियाँ कैसे लगें, या अपने क्षेत्र में BLO से संपर्क कैसे करें, तो ज़रूर बताइए।
Labels: NRC CAA, फॉर्म भरने की प्रक्रिया, बिहार बंद (Bihar Bandh), बिहार मतदाता सूची संशोधन, राजनीति
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