पटना: मॉनसून की सक्रियता के साथ ही बिहार में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। गंगा, गंडक, कोसी और महानंदा जैसी प्रमुख नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है, जिसके मद्देनजर राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग पूरी तरह से अलर्ट हो गए हैं। किसी भी संभावित आपदा से निपटने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) ने सभी जिलों को हाई अलर्ट पर रखा है और बचाव व राहत कार्यों के लिए पूरी तैयारी कर ली है। यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है कि इस साल बाढ़ से होने वाली क्षति को कम से कम किया जा सके और प्रभावित लोगों को समय पर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमों को तैनात कर दिया गया है। कुल 20 से अधिक टीमों को विशेष रूप से उन जिलों में भेजा गया है, जहाँ हर साल बाढ़ का खतरा अधिक रहता है, जैसे दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, और सुपौल। इन टीमों को आधुनिक उपकरणों जैसे मोटर बोट, लाइफ जैकेट, और संचार उपकरणों के साथ तैयार रखा गया है ताकि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई की जा सके।
बचाव और राहत कार्यों की व्यापक योजना
आपदा प्रबंधन विभाग ने बाढ़ से निपटने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की है, जिसमें कई महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं:
राहत शिविरों की स्थापना: बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित और ऊँचे स्थानों पर अस्थाई राहत शिविरों की पहचान कर ली गई है। इन शिविरों में प्रभावित लोगों के लिए भोजन, पीने का साफ पानी, दवाइयां, शौचालय और चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है।
खाद्य सामग्री का भंडारण: बाढ़ के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सामग्री की कमी न हो, इसके लिए सभी जिलों में आवश्यक मात्रा में चावल, दाल, तेल और अन्य खाद्य पदार्थों का भंडारण किया जा रहा है।
स्वास्थ्य सुरक्षा: बाढ़ के बाद जलजनित बीमारियों (water-borne diseases) का खतरा बढ़ जाता है। इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों में मेडिकल टीमें और आवश्यक दवाओं को तैयार रखा है। हर राहत शिविर में एक मेडिकल टीम तैनात रहेगी और महामारी फैलने की स्थिति में त्वरित कार्रवाई के लिए रैपिड रिस्पांस टीम भी बनाई गई हैं।
पशुधन की सुरक्षा: किसानों के पशुधन को सुरक्षित रखना भी एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए पशुपालन विभाग ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं के लिए विशेष शिविर बनाने और उनके चारे-पानी का इंतजाम करने की योजना बनाई है।
आधारभूत संरचना का निरीक्षण और सुदृढ़ीकरण
बाढ़ के दौरान पुलों, सड़कों और तटबंधों (embankments) की सुरक्षा एक अहम मुद्दा बन जाती है। सिंचाई विभाग और लोक निर्माण विभाग ने सभी प्रमुख तटबंधों का निरीक्षण किया है और कमजोर हिस्सों की मरम्मत और सुदृढ़ीकरण का काम तेजी से चल रहा है। तटबंधों पर 24 घंटे निगरानी रखने के लिए विशेष दल तैनात किए गए हैं। इसके अलावा, उन पुलों और सड़कों की भी जाँच की गई है, जो बाढ़ के पानी से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, ताकि उनका मरम्मत कार्य समय पर पूरा किया जा सके।
जन जागरूकता और संचार
सरकार का मानना है कि केवल प्रशासनिक तैयारी ही काफी नहीं है, बल्कि जन भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इसलिए, विभिन्न माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और एसएमएस अलर्ट के माध्यम से लोगों को नदियों के बढ़ते जलस्तर, संभावित खतरे वाले क्षेत्रों और सुरक्षित स्थानों की जानकारी दी जा रही है। लोगों को बाढ़ के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसकी भी जानकारी दी जा रही है।
पिछली आपदाओं से सबक
बिहार में 2008 की कोसी बाढ़ जैसी कई आपदाओं ने सरकार और जनता को महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं। इन अनुभवों से सीखते हुए, सरकार ने अपनी आपदा प्रबंधन रणनीति में कई सुधार किए हैं। आज, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें बहुत बेहतर ढंग से समन्वित (coordinated) हैं और उनके पास आधुनिक उपकरण हैं। पहले की तुलना में, संचार प्रणाली भी बहुत बेहतर है, जिससे सूचना का आदान-प्रदान तेजी से होता है।
राज्य के मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा, "हम इस चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। हमारी टीमें दिन-रात काम कर रही हैं ताकि हमारे नागरिकों को सुरक्षित रखा जा सके। मैं सभी से अपील करता हूँ कि वे सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देशों का पालन करें और घबराएं नहीं।"
यह स्पष्ट है कि बिहार सरकार बाढ़ के खतरे को गंभीरता से ले रही है और समय से पहले की गई यह तैयारी राज्य के लाखों लोगों के लिए एक बड़ी राहत है। उम्मीद है कि यह तैयारी और जन भागीदारी मिलकर इस प्राकृतिक आपदा का सफलतापूर्वक सामना कर पाएगी।
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